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वास्तु पुरुष की अवधारणा

संस्कृत में कहा गया है कि... गृहस्थस्य क्रियास्सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं विना। [1]

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वास्तु शास्त्र घर, प्रासादभवन अथवा मन्दिर निर्माण करने का प्राचीन भारतीय विज्ञान है जिसे आधुनिक समय के विज्ञान आर्किटेक्चर का प्राचीन स्वरुप माना जा सकता है। जीवन में जिन वस्तुओं का हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होता है उन वस्तुओं को किस प्रकार से रखा जाए वह भी वास्तु है वस्तु शब्द से वास्तुp-0[ का निर्माण हुआ है

डिजाइन दिशात्मक संरेखण के आधार पर कर रहे हैं। यह हिंदू वास्तुकला में लागू किया जाता है, हिंदू मंदिरों के लिये और वाहनों सहित, बर्तन, फर्नीचर, मूर्तिकला, चित्रों, आदि।

दक्षिण भारत में वास्तु का नींव परंपरागत महान साधु मायन को जिम्मेदार माना जाता है और उत्तर भारत में विश्वकर्मा को जिम्मेदार माना जाता है।

अनुक्रम

·         1वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं

o    1.1वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा

o    1.2वास्तुशास्त्र में आग्नेय दिशा

o    1.3वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा

o    1.4वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा

·         2सन्दर्भ

·         3इन्हें भी देखें

·         4बाहरी कड़ियाँ

वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं[संपादित करें]

वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं

उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है।

वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा[संपादित करें]

वास्तुशास्त्र में यह दिशा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सूर्य के उदय होने की दिशा है। इस दिशा के स्वामी देवता इन्द्र हैं। भवन बनाते समय इस दिशा को सबसे अधिक खुला रखना चाहिए। यह सुख और समृद्धि कारक होता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर भवन में रहने वाले लोग बीमार रहते हैं। परेशानी और चिन्ता बनी रहती हैं। उन्नति के मार्ग में भी बाधा आति है।

वास्तुशास्त्र में आग्नेय दिशा[संपादित करें]

पूर्व और दक्षिण के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं। अग्निदेव इस दिशा के स्वामी हैं। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर का वातावरण अशांत और तनावपूर्ण रहता है। धन की हानि होती है। मानसिक परेशानी और चिन्ता बनी रहती है। यह दिशा शुभ होने पर भवन में रहने वाले उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं। इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है। अग्नि से सम्बन्धित सभी कार्य के लिए यह दिशा शुभ होता है।

वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा[संपादित करें]

इस दिशा के स्वामी यम देव हैं। यह दिशा वास्तुशास्त्र में सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है। इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए। दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजी रोजगार में परेशानी का सामना करना होता है। गृहस्वामी के निवास के लिए यह दिशा सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा[संपादित करें]

दक्षिण और पश्चिम के मध्य की दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा का वास्तुदोष दुर्घटना, रोग एवं मानसिक अशांति देता है। यह आचरण एवं व्यवहार को भी दूषित करता है। भवन निर्माण करते समय इस दिशा को भारी रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी राक्षस है। यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर भवन में रहने वाला व्यक्ति सेहतमंद रहता है एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

1.    "वास्तुशास्त्र विभाग, संस्कृत विद्यापीठ , नई दिल्ली". मूल से 12 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अगस्त 2017.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

·         वास्तुकला (आर्किटेक्चर)

·         शिल्पशास्त्र

·         भारतीय स्थापत्यकला

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

·         स्थापत्य वेद - यहाँ सभी प्रमुख स्थापत्य वेद देवनागरी में उपलब्ध हैं।

·         वास्तुविद्या के अनुसार भवन में कक्षों में का उपयुक्त स्थान (अखण्ड ज्योति १९९९)

·         रूपमण्डनम् (वास्तुशास्त्र का संस्कृत ग्रंथ) (गूगल पुस्तक ; व्याख्याता - बलराम श्रीवास्तव)

·         क्या है वास्तु ? (पंजाबकेसरी)

·         आपके घर की वास्‍तु विशेषताएं

·         आपके सपनों के घर में वास्तु की भूमिका

·         घर के लिए वास्तु

·         वास्तु अनुसार टॉयलेट टिप्स और उपाय

 

वास्तुशास्त्र किसी निर्माण से सम्बंधित चीज़ों के शुभ अशुभ फलों को बताता है. यह किसी निर्माण के कारण होने वाली समस्याओं के कारण और निवारण को भी बताता है... https://www.aajtak.in/religion/story/what-is-vastu-shastra-and-how-does-it-benefit-you-tlifd-1014001-2020-01-16

 

वास्तु शास्त्र

वास्तु क्या है?

वास्तु संक्षेपतो वक्ष्ये गृहदो विघनाशनम्

ईशानकोणादारम्भ्य हयोकार्शीतपदे प्यजेत्

इसका अर्थ है कि वास्तु घर निर्माण करने की वह कला है जो ईशान कोण से प्रारंभ होती है और जिसके पालन से घर के विघ्न दूर होते हैं। प्राकृतिक उत्पात व उपद्रवों से रक्षा होती है यानि घर के वातावरण से नेगेटिविटी दूर होती है।

एक अन्य शास्त्र में वास्तु के बारे में कहा गया है

गृहरचना वच्छिन्न भूमे

यानि घर निर्माण के योग्य भूमि को वास्तु कहते हैं।

कुल मिलाकर वास्तु वह विज्ञान है जो भूखंड पर भवन निर्माण से लेकर उसमें इस्तेमाल होने वाली चीजों के बारे में मार्गदर्शन करता है।

वास्तु प्राचीन भारत का एक शास्त्र है। जिसमें वास्तु (घर) निर्माण के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए हैं। प्रकृति में विविध बल उपस्थित हैं जिनमें जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश शामिल हैं। इनके बीच परस्पर क्रिया होती है, जिसका व्यापक प्रभाव इस पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी पर पड़ता है। वास्तु ज्योतिष के अनुसार इस प्रक्रिया का प्रभाव हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर व्यापक रुप से पड़ता है। वास्तु शास्त्र कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का मिश्रण है। इसलिए कहा गया है -

नमस्ते वास्तु पुरूषाय भूशय्या भिरत प्रभो मद्गृहं धन धान्यादि समृद्धं कुरू सर्वदा


जीवन में वास्तु का महत्व

माना जाता है कि वास्तु शास्त्र हमारे जीवन को सुगम बनाने एवं कुछ अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षा करने में हमारी मदद करता है। एक तरह से वास्तु शास्त्र हमें नकारात्मक ऊर्जा से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है। उत्तर भारत में मान्यता अनुसार वास्तु शास्त्र वैदिक निर्माण विज्ञान है, जिसकी नींव विश्वकर्मा जी ने रखी है। जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भवन निर्माण में अत्यधिक महत्व रखते हैं।

भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान वास्तुविद आसपास उपस्थित वस्तुओं को देखकर लगाते हैं। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या स्थित है और उसका भूखंड पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बात की जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के विश्लेषण से प्राप्त होती है। यदि वास्तु सिद्धांतों व नियमों के अनुरूप भवन निर्माण करवाया जाए तो भवन में रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है। प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर, सुखदायी व सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखद एवं शांतिमय हो। इसलिए आवश्यक है कि भवन वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप निर्मित हो और उसमें कोई वास्तु दोष न हो। यदि घर की दिशाओं में या भूमि में दोष है तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान क्यों न खड़ा किया जाए, फिर भी उसमें रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय नहीं होगा। मुगल कालीन भवनों, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य में भी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों व नियमों का सहारा लिया गया था।



वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र का संबंध

वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र दोनों एक-दूसरे के पूरक व अभिन्न अंग हैं। जैसे मानवीय शरीर का अपने अंगों के साथ अटूट संबंध होता है। ठीक वैसे ही ज्योतिष शास्त्र का अपनी सभी शाखायें प्रश्न शास्त्र, अंक शास्त्र, वास्तु शास्त्र आदि के साथ अटूट संबंध है। ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र के बीच निकटता का कारण यह है कि दोनों शास्त्रों का उद्देश्य मानव को प्रगति एवं उन्नति की राह पर अग्रसर एंव सुरक्षा प्रदान कराना है। वास्तु सिद्धांत के अनुरूप निर्मित भवन में वास्तुसम्मत दिशाओं में सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के परिणामस्वरूप भवन में रहने वाले लोगों का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। इसलिए भवन निर्माण से पहले किसी वास्तुविद से परामर्श लेकर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए।

वास्तु शास्त्र

वास्तु क्या है?

वास्तु संक्षेपतो वक्ष्ये गृहदो विघनाशनम्

ईशानकोणादारम्भ्य हयोकार्शीतपदे प्यजेत्

इसका अर्थ है कि वास्तु घर निर्माण करने की वह कला है जो ईशान कोण से प्रारंभ होती है और जिसके पालन से घर के विघ्न दूर होते हैं। प्राकृतिक उत्पात व उपद्रवों से रक्षा होती है यानि घर के वातावरण से नेगेटिविटी दूर होती है।

एक अन्य शास्त्र में वास्तु के बारे में कहा गया है

गृहरचना वच्छिन्न भूमे

यानि घर निर्माण के योग्य भूमि को वास्तु कहते हैं।

कुल मिलाकर वास्तु वह विज्ञान है जो भूखंड पर भवन निर्माण से लेकर उसमें इस्तेमाल होने वाली चीजों के बारे में मार्गदर्शन करता है।

वास्तु प्राचीन भारत का एक शास्त्र है। जिसमें वास्तु (घर) निर्माण के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए हैं। प्रकृति में विविध बल उपस्थित हैं जिनमें जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश शामिल हैं। इनके बीच परस्पर क्रिया होती है, जिसका व्यापक प्रभाव इस पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी पर पड़ता है। वास्तु ज्योतिष के अनुसार इस प्रक्रिया का प्रभाव हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर व्यापक रुप से पड़ता है। वास्तु शास्त्र कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का मिश्रण है। इसलिए कहा गया है -

नमस्ते वास्तु पुरूषाय भूशय्या भिरत प्रभो मद्गृहं धन धान्यादि समृद्धं कुरू सर्वदा


जीवन में वास्तु का महत्व

माना जाता है कि वास्तु शास्त्र हमारे जीवन को सुगम बनाने एवं कुछ अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षा करने में हमारी मदद करता है। एक तरह से वास्तु शास्त्र हमें नकारात्मक ऊर्जा से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है। उत्तर भारत में मान्यता अनुसार वास्तु शास्त्र वैदिक निर्माण विज्ञान है, जिसकी नींव विश्वकर्मा जी ने रखी है। जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भवन निर्माण में अत्यधिक महत्व रखते हैं।

भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान वास्तुविद आसपास उपस्थित वस्तुओं को देखकर लगाते हैं। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या स्थित है और उसका भूखंड पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बात की जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के विश्लेषण से प्राप्त होती है। यदि वास्तु सिद्धांतों व नियमों के अनुरूप भवन निर्माण करवाया जाए तो भवन में रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है। प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर, सुखदायी व सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखद एवं शांतिमय हो। इसलिए आवश्यक है कि भवन वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप निर्मित हो और उसमें कोई वास्तु दोष न हो। यदि घर की दिशाओं में या भूमि में दोष है तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान क्यों न खड़ा किया जाए, फिर भी उसमें रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय नहीं होगा। मुगल कालीन भवनों, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य में भी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों व नियमों का सहारा लिया गया था।



वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र का संबंध

वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र दोनों एक-दूसरे के पूरक व अभिन्न अंग हैं। जैसे मानवीय शरीर का अपने अंगों के साथ अटूट संबंध होता है। ठीक वैसे ही ज्योतिष शास्त्र का अपनी सभी शाखायें प्रश्न शास्त्र, अंक शास्त्र, वास्तु शास्त्र आदि के साथ अटूट संबंध है। ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र के बीच निकटता का कारण यह है कि दोनों शास्त्रों का उद्देश्य मानव को प्रगति एवं उन्नति की राह पर अग्रसर एंव सुरक्षा प्रदान कराना है। वास्तु सिद्धांत के अनुरूप निर्मित भवन में वास्तुसम्मत दिशाओं में सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के परिणामस्वरूप भवन में रहने वाले लोगों का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। इसलिए भवन निर्माण से पहले किसी वास्तुविद से परामर्श लेकर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए।

आखिर क्या है वास्तु शास्त्र

नमस्कार , शायद आप सभी ने वास्तु शास्त्र के बारे में सुना होगा अगर नही भी सुना होगा तो आज हम आपको वास्तु शास्त्र के बारे में विस्तार से बतायेंगे |

आखिर क्या है वास्तु शास्त्र :

वास्तु का शाब्दिक अर्थ निवासस्थान होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों का हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है। यह विद्या भारत की प्राचीनतम विद्याओं में से एक है जिसका संबंध दिशाओं और ऊर्जाओं से है। इसके अंतर्गत दिशाओं को आधार बनाकर आसपास मौजूद नकारात्मक ऊर्जाओं को कुछ इस तरह सकारात्मक किया जाता है, ताकि वह मानव जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव ना डाल सकें। विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक मे परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार मे कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय है।वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। हमारे ऋषि मनीषियो ने हमारे आसपास की सृष्टि मे व्याप्त अनिष्ट शक्तियो से हमारी रक्षा के उद्देश्य से इस विज्ञान का विकास किया। वास्तु का उद्भव स्थापत्य वेद से हुआ है, जो अथर्ववेद का अंग है। इस सृष्टि के साथ साथ मानव शरीर भी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और वास्तु शास्त्र के अनुसार यही तत्व जीवन तथा जगत को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है। भवन निर्माण मे भूखंड और उसके आसपास के स्थानों का महत्व बहुत अहम होता है। भूखंड की शुभ-अशुभ दशा का अनुमान वास्तुविद् आसपास की चीजो को देखकर ही लगाते है। भूखंड की किस दिशा की ओर क्या है और उसका भूखंड पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, इसकी जानकारी वास्तु शास्त्र के सिद्धांतो के अध्ययन विश्लेषण से ही मिल सकती है। इसके सिद्धांतो के अनुरूप निर्मित भवन मे रहने वालो के जीवन के सुखमय होने की संभावना प्रबल हो जाती है। हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसका घर सुंदर और सुखद हो, जहां सकारात्मक ऊर्जा का वास हो, जहां रहने वालों का जीवन सुखमय हो। इसके लिए आवश्यक है कि घर वास्तु सिद्धांतो के अनुरूप हो और यदि उसमे कोई वास्तु दोष हो, तो उसका वास्तुसम्मत सुधार किया जाए। यदि मकान की दिशाओ मे या भूमि मे दोष हो तो उस पर कितनी भी लागत लगाकर मकान खड़ा किया जाए, उसमे रहने वालो की जीवन सुखमय नहीं होता। मुगल कालीन भवनो, मिस्र के पिरामिड आदि के निर्माण-कार्य मे वास्तुशास्त्र का सहारा लिया गया है।

वास्तु शास्त्र का महत्व :

वास्तु का प्रभाव चिरस्थायी है, क्योंकि पृथ्वी का यह झुकाव शाश्वत है, ब्रह्माण्ड मे ग्रहो आदि की चुम्बकीय शक्तियो के आधारभूत सिध्दांत पर यह निर्भर है और सारे विश्व मे व्याप्त है इसलिए वास्तुशास्त्र के नियम भी शाश्वत है, सिध्दांत आधारित, विश्वव्यापी एवं सर्वग्राहा है। किसी भी विज्ञान के लिए अनिवार्य सभी गुण तर्क संगतता, साध्यता, स्थायित्व, सिध्दांत परकता एवं लाभदायकता वास्तु के स्थायी गुण है। अतः वास्तु को हम बेहिचक वास्तु विज्ञान कह सकते है।

वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र दोनो एक-दूसरे के पूरक है क्योंकि दोनो एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं। जैसे शरीर का अपने विविध अंगों के साथ अटूट संबंध होता है। ठीक उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र का अपनी सभी शाखायें प्रश्न शास्त्र, अंक शास्त्र, वास्तु शास्त्र आदि के साथ अटूट संबंध है। ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र के बीच निकटता का कारण यह है कि दोनों का उद्भव वैदिक संहितायों से हुआ है। दोनों शास्त्रों का लक्ष्य मानव मात्र को प्रगति एवं उन्नति की राह पर अग्रसर कराना है एवं सुरक्षा देना है। वास्तु सिद्धांत के अनुरूप निर्मित भवन एवं उसमे वास्तुसम्मत दिशाओं मे सही स्थानों पर रखी गई वस्तुओं के फलस्वरूप उसमे रहने वाले लोगो का जीवन शांतिपूर्ण और सुखमय होता है। इसलिए उचित यह है कि भवन का निर्माण किसी वास्तुविद से परामर्श लेकर वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप ही करना चाहिए। इस तरह, मनुष्य के जीवन मे वास्तु का महत्व अहम होता है। इसके अनुरूप भवन निर्माण से उसमे सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। फलस्वरूप उसमे रहने वालों का जीवन सुखमय होता है। वहीं, परिवार के सदस्यों को उनके हर कार्य मे सफलता मिलती है। इस जानकारी को शेयर जरुर करें और ऐसी ही जानकारियों को जानने के लिए हमारे साथ बने रहिये |