क्या है ये जन्मपत्री?

वेदांग चक्षुमनीषियों द्वारा रचित चार वेद है एवं छ: वेदांग है उनमे से छठा वेदांग ज्योतिष है इसकी व्याख्या कुछ इस प्रकार से की गई है :- 

यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , ज्योतिषं मूर्धानि स्थितम् || अर्थात्- जिस प्रकार मौर के सिर पर शिखासर्प के सिर पर मणि का स्थान है उसी प्रकार वेदांगों में ज्योतिष का स्थान माना गया है|

ज्योतिष

ज्‍योतिष की सहायता से हम ग्रहों के पृथ्‍वी के जड चेतन पर पडने वाले प्रभाव का अध्‍ययन करते हैं। जिस प्रकार प्रकृति में मौजूद हर जड चेतन की तरह में कुछ न कुछ विशेषताएं होती हैं , इसी प्रकार प्रत्‍येक मनुष्‍य भी भिन्‍न भिन्‍न बनावट के होते हैं , प्रत्‍येक में अलग अलग क्षमता होती है , इसलिए सबके पास सब कुछ नहीं हो सकता। भले ही सभी जड चेतन एक जैसे जीवन चक्र से गुजरते हों , पर चूंकि मनुष्‍य सबसे अधिक विकसित प्राणी है , और इसके जीवन के बहुत सारे आयाम हैं , इस कारण एक जैसे दिखने के बाद भी मनुष्‍य की जीवनशैली एक जैसी नहीं। दुनियाभर में समान उम्र के लोग भी भिन्‍न भिन्‍न परिस्थितियों से गुजरने को बाध्‍य होते हैं , प्रकृति के खास नियम के हिसाब से एक का समय अनुकूल होता है तो दूसरे का प्रतिकूल ।

आज के समाज में ज्योतिष विद्द्या का अत्याधिक व्यवसायीकरण होने के कारन इसका स्वरूप ही बदला सा लगता है मानव मात्र इसे मात्र दुखों को दूर करने का तरीका समझता है और ज्योतिषी भी उस जातक को केवल वर्तमान दशा अन्तर्दशा के अनुसार उपायों के द्वारा लाभ प्राप्त करने का तरीका बताता है !

जबकि यह सत्य नहीं है शास्त्रों की मानें तो हमारी जन्म कुंडली हमारे पूर्व जन्म कृत कर्मों के आधार पर ग्रहों की स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ कर्मों का लेखा जोखा दर्शाती है ! जिससे जातक वर्तमान में क्या करे क्या न करे को जान कर क्रियमाण शुभ कर्मों के द्वारा अपना जीवन सुखी कर सकता है और जरूरी है समाज में ऐसे ज्योतिषियों का निर्माण करना जो पूर्णतया संकारित हों हिन्दू संस्कृति का सम्मान करते हों पालन करते हों ! वैदिक ज्योतिष विद्द्या के मर्म को जानते हों ताकि न्यायोचित धन अर्जन के साथ-साथ जन कल्याण भी करे

हमारा उद्देश्य समाज को सु संस्कृत करना है ताकि समाज अंदरूनी तोर परविवेकशील हो वोह सही-गलत को जान कर अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो ताकिएक स्वच्छ समाज का निर्माण हो सके और भारत का नाम रोशन हो

इसके लिए केन्द्र निम्न प्रकार से समर्पित है

1. Cosmic Jyotish संस्थान द्वारा निर्देशित एवं संकलित ज्योतिष शिक्षा प्रणाली को नियमित शिक्षा के द्वारा सात्विक एवं स्वच्छ वातावरण में उच्च कोटि के ज्ञान संपन्न “ज्योतिषी” का निर्मान् करना !

2. समय-समय पर अनुभवी ज्योतिषियों द्वारा विद्यार्थियों को प्रशिक्षण प्रदान करना !

3. हर रोज की समस्याएं जैसे बीमारीधन की बे बरकतीघर में तनावबच्चों में संस्कार हीनता इत्यादि से मुक्ति पाने के लिए नित्यमासिक एवं वार्षिक रूप में “पञ्चमहायज्ञ” युक्त “वेदोक्त जीवन शैली” को सिखाना एवं समय -समय पर इस सम्बन्ध में शिविर लगाना !

4. समय -समय पर गीतारामायणउपनिषदपुराणों एवं अन्य हिन्दू ग्रंथों आदि के अंतर्गत विद्वानों द्वारा ज्ञान-गोष्ठी का आयोजन करना !

5. विद्यालयों में पढ़ रहे प्राथमिकमाध्यमिक एवं मैट्रिक स्तर के विद्द्यार्थियों को हिन्दू संस्कृति से ओत-प्रोत पाठन सामग्री निशुल्क प्रदान कर अभ्यास करवा कर परीक्षा के द्वारा जाँच कर प्रमाण पत्र एवं पारितोषक देकर उन्हें उत्साहित करना एवं हिन्दू कर्मकांड के अंतर्गत नित्य करनीय कर्तव्य कर्म सिखा कर उन्हें सुसंस्कृत कर उनका बोध्हिक एवं मानसिक स्तर ऊँचा उठाना जिससे समाज से भ्रष्टाचारव्यभिचाररिश्वत-खोरी जैसी भयानक बिमारियों का समूल नाश किया जा सके !

6. समाज के किसी भी प्राणी के जीवन की समस्याओं के वेदोक्त पद्धति के अनुसार जन्म कुंडली या प्रश्न कुंडली के आधार पर पूर्ण फलादेश प्रदान करना !!


हमारा मुख्या उद्देश्य साधारण समाज को दान न दिलवा कर उसे अध्यात्मिक उन्नति के द्वारा कर्तव्य परायण बना कर इस योग्य बनाना की वह समाज की सेवाकरे ! एवं इश्वर से मांगेन की किसी व्यक्ति विशेष से

इसके अलावे ज्‍योतिष से हमें इस बात के संकेत मिल जाते हैं कि जातक के आनेवाले समय में किसी खास पक्ष का वातावरण सुखद रहेगा या कष्‍टप्रद ..  इस बात का अहसास होते ही प्रकृति के नियमों के प्रति हमारा विश्‍वास गहराने लगता है। चूंकि सुख और कष्‍ट की सीमा को जान पाना मुश्किल है , इसलिए हमलोग किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानते , अंत अंत तक जीतने की कोशिश करते है , पर न जीत का घमंड होता है , न हार का गम । हम यह मान लेते हैं कि जो भी परिणाम हमारे सामने है , वो प्रकृति के किसी नियम के अनुसार हैं। हमने किसी समय कोई गल्‍ती की , जिसका फल हमें भुगतना पड रहा है। ऐसी स्थिति में हम दूसरों पर व्‍यर्थ का दोषारोपण नहीं करते , प्रकृति को जिम्‍मेदार मानकर अपने मन को कलुषित होने से बचा लेते हैं। हमें विश्‍वास हो जाता है कि यदि जानबूझकर दूसरा हमें कष्‍ट दे रहा है , तो प्रकृति उसका हिसाब किताब अवश्‍य रखती है और आनेवाले दिनों में उसका फल उसे स्‍वयं मिलेगा। इस प्रकार प्रकृति के नियमों के सहारे आध्‍यात्‍म का ज्ञान हमें ज्‍योतिष के माध्‍यम से मिल जाता है।