Second Part
■ बृहस्पति ग्रह
बृहस्पति ग्रह आध्यात्मिक ज्ञान, सच्चाई, दयाधर्म और धन का कारक होते हैं. और हमारे शरीर में मेद यानी चर्बी के उपर बृहस्पति का प्रतिनिधित्व है. एक स्त्री के कुण्डली में बृहस्पति ग्रह पति का कारक होते हैं. सामाजिक सम्मान और दैविक शक्ति भी गुरु के ही प्रभाव में आते हैं.
■ शुक्र ग्रह
कामवासना और इच्छाशक्ति, इसका प्रतिनिधित्व शुक्र ग्रह द्वारा ही किया जाता है। पुरुषों की कुण्डली में शुक्र ग्रह को वीर्य का कारक भी माना गया है। इस वजह से यह कहा जाता है कि मानव सृष्टि का विकास शुक्र द्वारा ही संभव है।
■ शनिदेव
शनि का स्थान नाभि में माना गया है। रमल शास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति के चिन्तन की गहराई का आकलन करने के लिए उसकी कुण्डली में शनि की मजबूती देखी जाती है।
रमल शास्त्र के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में शनि और बृहस्पति, एक ही भाव में मौजूद हों तो ऐसा व्यक्ति वेदों, पुराणों और शास्त्रों का ज्ञाता होता है।
■ राहु छाया ग्रह
राहु का स्थान मानव मुख में माना गया है। राहु जिस भाव में बैठा होता है उसी के अनुसार फल देता है। इसके साथ अगर मंगल का तेज मिल जाए तो ऐसा व्यक्ति क्रोधी तो होता है साथ ही उसकी वाणी में वीरता होती है।
राहु के साथ बुध
राहु के साथ अगर बुध की शक्ति मौजूद हो तो सम्बन्धित जातक मधुर वाणी बोलता है, वहीं बृहस्पति की शक्ति हो तो वह अत्यंत ज्ञानवर्धक और शास्त्रों से जुड़ी बातें बोलेगा। अगर राहु के साथ शुक्र की शक्ति मिल जाए तो व्यक्ति बहुत रोमान्टिक बातें करता है।
■ केतु छाया ग्रह
केतु का स्थान कंठ से लेकर हृदय तक होता है। केतु ग्रह का सम्बन्ध गुप्त और रहस्यमयी कार्यों से भी होता है।
रक्त प्रवाह
यूं तो ये सभी ग्रह अलग-अलग स्थान पर निवास करते हैं लेकिन रक्त के प्रवाह के कारण, एक-दूसरे पर इनका प्रभाव देखा जा सकता है। इनकी स्थिति और निवास जानने के बाद निश्चित तौर पर जातक शारीरिक अंगों के रूप में अपने ग्रहों को समझ पाएंगे।
