आओ थोड़ा राशि - वर्ण समझते हैं
हमारी राशियाँ भी वर्ण लिए हुए हैं अर्थात एक तो वह वर्ण है जो २०७२ वर्ष पूर्व तय किया गया था कोई ब्राह्मण है कोई क्षत्रिय है यह वर्ण सतत चला आ रहा है। एक वर्ण आपको राशि से भी मिलता है। जैसे सिंह राशि क्षत्रिय वर्ण की है। किसी ब्राह्मण के यहाँ सिंह राशि में बालक का जन्म में तो परिवार की ओर से तो वह ब्राह्मण होगा किन्तु भीतर से वह क्षत्रिय स्वभाव वाला भी होगा। ब्राह्मण घर में जन्म लेने से उसकी बुद्धि में ब्राह्मण का तेज तो होगा किन्तु राशि से मिले क्षत्रिय वर्ण से बुद्धि में उग्रता आएगी। अब बढ़ने वाला बच्चा परिवार की ज्ञान भक्ति साधना से प्रभावित होता है तो वह राशि से मिले वर्ण को काफी सीमा तक दबा देगा। यदि आज जैसा ब्राह्मण परिवार है जो लगभग शूद्र हो चुके हैं घर में कोई ज्ञान भक्ति साधना नहीं है शराब मांस नंगेपन की अति है तो राशि वाला वर्ण बच्चे पर प्रभावी होने लगेगा। यानि घर का वर्ण राशि से मिले वर्ण को नष्ट करके या कम करके घर जैसा ही बना लेगा। पर बड़ा कठिन है राशि के वर्ण का प्रभाव स्पष्ट दिख सकता है क्यूंकि सामान्यतः हर घर में सामान्य ज्ञान भक्ति साधना होती है। इसीलिए एक ज्ञानी ब्राह्मण के यहाँ जन्मे चार बालक एक से ज्ञानी नहीं बन सकते। हैं सारे ब्राह्मण पर इनमे जो सिंह रशि में आएगा उसका पढ़ने में उतना अधिक मन न होगा - विषय को उतने अच्छे से न समझेगा - भक्ति ज्ञान की ओर कम ही आएगा और मान पाने को अधिक प्रयासरत रहेगा।मीन राशि ब्राह्मण राशि है यदि मीन राशि का बालक किसी ब्राह्मण के घर में है तो ब्राह्मण परिवार के ज्ञान कर्म को ,जो विशुद्ध बुद्धि का कर्म है, पा जायेगा। इस बालक को जैसा चाहे वैसा बुद्धि कर्म करने में लगा लो कठिन विषय भी शीघ्र समझ लेगा। राशि से भी ब्राह्मण - घर से भी ब्राह्मण। यही मीन राशि क्षत्रिय घर में जन्म ले तो थोड़ा क्षत्रिय कर्म में कमजोर हो सकती है परन्तु घर में भयानक क्षत्रियत्व भरा हुआ है तो बच्चे की राशि से मिली ब्राह्मण क्षमता टूट जाएगी और एक अति बुद्धिमान क्षत्रिय बनेगा
तुला राशि शूद्र है ये - शूद्रता भरी है - २०७२ वर्ष से पहले शूद्र शब्द नहीं था। समाज में यह समझ थी कि ज्ञानी का बेटा ज्ञानी शीघ्रता से बन सकता है ,लड़ाके का बेटा अच्छा लड़ाका बन सकता है किन्तु ये ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय शूद्र शब्द न थे। ये सनातन रचना के समय रचे गये। उससे पूर्व पाली भाषा चलती थी ,हिंदी संस्कृत नहीं थीं। जब हिंदी संस्कृत बनायीं गयीं तो लगभग सभी शब्द नए बनाये गये। तर्क के साथ बनाये गये। जैसे शूद्र -- शूद्रता का कर्म सेवा कर्म है और इस कर्म में हम विवशता में फसते हैं ,स्वेच्छा से इस कर्म को बहुत ही कम लोग करते हैं और जिनमे सेवा भाव होता है वे ही इसे सही से करते हैं। अब ब्राह्मण बुद्धि हो या क्षत्रिय बुद्धि हो वो इस कर्म को कर ही नहीं सकती - ब्राह्मण अपनी बुद्धि चलाके सेवा कर्म से बचना चाहेगा - वहां राजनीती फैलाएगा ,क्षत्रिय बुद्धि वहां अहंकार दिखाएगी आदेश पाने पर गुर्राएगी।बनिया बुद्धि हर बात में कहेगी कुछ दो तो सेवा करूँ। तो इन्हे कहा जाता है अबे कर्म के अनुसार स्वयं को ढाल - सुधर जा - सुधर - सुदर - शूद्र। तो ऐसे बनाया शब्द शूद्र - सुधर - सेवा के लिए स्वयं को बदल - मालिक से बहस तर्क न कर - सुधर। अब सिंह राशि का लड़का सेवा कर्म में लगे तो उसके व्यवहार में अकड़ रहेगी जो मालिक को सदा खटकेगी और मालिक हमेशा उसे सेवा कर्म सुधारने में लगा रहेगा। टोक टोक के उसे क्षत्रिय से शूद्र बनाएगा। यदि तुला राशि का व्यक्ति सेवा कर्म में है तो वह अत्यंत सुख देगा। इनमे सेवा भाव अधिक होता है ,पर रजोगुणी है तुला राशि अतः तुला राशि वाला सभी सेवकों का आदेशकर्ता भी बन सकता है।
ब्राह्मण - ब्रह्म मन - जिसके मन में हर समय ब्रह्म हो - जो ज्ञान से ब्रह्म के चिंतन में लगा हो
क्षत्रिय - जो क्षेत्र की रक्षा पालना में लगा हो
वैश्य - वश आ - जो धन से वश में करे या धन के वश में है
राशि के अनुसार कुछ ऐसा है
मिथुन ---- सतोगुणी -- शूद्र
कन्या ----सतोगुणी ---वैश्य
धनु -----सतोगुणी --- क्षत्रिय
मीन ----सतोगुणी --- ब्राह्मण
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मेष ----- रजोगुणी ---क्षत्रिय
कर्क ----- रजोगुणी ---ब्राह्मण
तुला ----- रजोगुणी ---शूद्र
मकर ----- रजोगुणी ---वैश्य
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वृष ----तमोगुणी-----वैश्य
सिंह ----तमोगुणी-----क्षत्रिय
वृश्चिक ----तमोगुणी----ब्राह्मण
कुम्भ ----तमोगुणी----शूद्र
सतोगुणी - जो सत्य के निकट रहते हैं। जो इस भाव में अधिक रहते हैं कि यह सब छोड़के जाना है क्या व्यर्थ की भागदौड़ में अधिक मरना। सच्चे ,छल कपट कम।शीघ्र झुकते नहीं ,सबसे निभती नहीं ,बहुत संवेदनशील हो सकते हैं।
रजोगुणी - जो अपने हित के लिए फट से राजी हो जाए या कैसे भी करके दूसरे को राजी करले और अपना काम बना ले। धूर्त भी हो सकते हैं ,व्यवहारिक होते हैं। ढेर मित्र हो सकते हैं। सबसे निभा लेते हैं काम बना लेते हैं। सतोगुणी से कम संवेदनशील होते हैं।
तमोगुणी - स्वयं के प्रति अति संवेदनशील होंगे दूसरे के प्रति संवेदनशीलता सबसे कम होगी। दूसरे की गर्दन भी काट देंगे तो अधिक उफ्फ नहीं करेंगे स्वयं के चुभाई सुई भी जीवन भर स्मरण रहेगी। केवल खाने बच्चा बनाने पहनने के आनंद लेने वाले लोग
शेष आप स्वयं जोड़ तोड़ करके समझ सकते हैं की आपका वर्ण क्या है - आपके बच्चे का राशिराशि से वर्ण क्या है - आपके घर में आपके वर्ण को कितना गंभीरता से जिया जाता है और उसके अनुसार आप जान सकते हैं कि आपके बच्चे को किस कर्म में डालना उचित होगा
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राशि प्रभाव को वर्ण साधना तोड़ती है अपने वर्ण को मन से जियो वैसे ही कर्म करो
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लगभग दो हज़ार वर्षों से शिक्षा से दूर रहे शूद्रों को महिर्षि गधानंद स्वामी ने अचानक वेद पकड़ा दिए - क्या लाभ हुआ रहे तो शूद्र के शूद्र ही। कल की ही बात लो शूद्र समाजी मेरे महादेव के फोटो पे आके लिख गया "सेक्सी मूर्ति पूजा बंद करो"। तो ये शूद्र शूद्र थे शूद्र ही रहे भले हाथ में वेद रख लिए। तभी तो इन्हे कहा गया सुधर - सुदर - सूद्र - शूद्र - सुधर। परन्तु ये वेद पकड़ने के बाद भी नहीं सुधरे। सनातन का नियम है ज्ञान ब्राह्मण से लीजिये और ये शूद्र स्वयं वेद पढ़ने चल दिए।कदाचित गधानंद भी सिंह राशि का रहा होगा - ठस अड़ियल बुद्धि। वह अति शूद्र ही तो है जो भक्ति पुराणों की निंदा करे और स्वयं को सनातनी भी कहे। सुधर जा स्वयं मत समझ। कुछ का कुछ समझ बैठेगा। सुधर - शूद्र
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